Monday 2 January 2017

Basic to predict kundali

🕉🔜किसी कुण्डली के विवेचन करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण स्टेप होते है जिसे अपना कर अच्छी प्रकार शत प्रतिशत शुद्धि
के साथ व्यक्ति के बारे मे अनुमान लगाया जा सकता है।
🔜1-सर्वप्रथम कुण्डली का लग्न देखें।लग्न को लग्नेश देख रहा हो या वह स्वयं उसमें बैठा हो अथवा शुभग्रहों के साथ उच्च या मित्र घर में हो,केन्द्र में हो या त्रिकोण भाव में हो तो जातक दीर्घायु,स्वस्थ,शारिरिक,मांसिक रूप से मजबूत होता है।पूरी कुण्डली का बल लग्न के बल पर ही निर्भर करता है।
🔜2-इसी प्रकार चन्द्रमा और सूर्य को भी देखना चाहिए।शुक्लपक्ष की अष्टमी से कृष्णपक्ष की अष्टमी के बीच का चन्द्र शुभग्रह माना जाता है।चन्द्रमा के साथ जितने ग्रह हो वह उतना ही बली माना जाता है।चन्द्रमा का शुभग्रहो से युति या दृष्टिसम्बन्ध हो तो वह अत्यन्त शुभ फल प्रदान करता है।चन्द्रमा के अगली पिछली राशि में भी शुभ ग्रह हो तो इससे उसे बल मिलता है।
🔜3-यदि लग्न ,चन्द्रमा और सूर्य तीनो शुभग्रहों युत दृष्ट हों तो जातक स्वस्थ, सुखी,समृद्ध,प्रसिद्ध और भाग्यशाली होता है।
🔜4-किन्तु लग्न,चन्द्रमा सूर्य का पापग्रहो  शनि,राहु केतु से युत दृष्ट होने पर अथवा नीच शत्रु राशि में होने पर जातक रोग,दुःख,कष्ट,अभाव दुर्घटना तथा दुर्भाग्य में अपना जीवन का अधिकांश हिस्सा व्यतीत करता है।
🔜5-लग्न,चन्द्र व सूर्य को देखने के बाद यह जानना चाहिए कि उस लग्न में कौन से ग्रह कारक है और कौन से ग्रह मारक है।इसके लिए  ज्योतिष ग्रन्थों में अनेक सूत्र दिए गये हैं किन्तु संक्षेप में जो ग्रह त्रिकोण के स्वामी होते है वे कुण्डली के के कारक ग्रह कहे जाते है।उनकी दूसरी राशि त्रिकभाव में भी हो तो उनका कारकत्व बरकरार रहता है।तथा जो त्रिकभाव (6,8,12)के स्वामी हों वे मारक होते हैं।
🔜6-तत्पश्चात यह जानना चाहिए कि किस ग्रह की दशान्तर्दशा चल रही है दशाओं में विंशोत्री दशा सर्वमान्य दशा होती है
🔜7-यदि दशाधीश कुण्डली का कारक ग्रह होगा तो वह जिस भाव का स्वामी हो,जिस भाव पर बैठा हो,तथा जिन जिन भावों पर दृष्टि डाल रहा हो उससे सम्बन्धित शुभ फल अपनी दशा में प्रदान करता है।
🔜8-यदि वही कारकग्रह यदि कुण्डली के त्रिक भावों में बैठा हो,शनि राहु केतु के साथ बैठा हो,नीचादि राशि में बैठा हो तो उन सारे भावों के शुभफलों का नाश करता है जिनपर वह बैठा है तथा जिनपर दृष्टि डाल रहा है।साथ ही उन सभी कारकों का भी नाश करता है जिससे उसका सम्बन्ध है।
🔜9-इसप्रकार कुण्डली के कारक मारक ग्रह की एक लिस्ट बना लेनी चाहिए
🔜10-कारक ग्रह कुण्डली में यदि शुभ होतो वह अपनी शुभता का फल अपने पूरे दशा काल में समान रूप से देगा ऐसा नही है।बल्कि कारक ग्रह अपना सर्वाधिक शुभ फल अपनी महादशा में तथा दूसरे कारक ग्रहों की अन्तरदशा में ही देगा।कारक ग्रहों के महादशा में मारक ग्रहों की अन्तरदशा में सामान्य शुभ फल ही मिलता है।
🔜11-सबसे महत्वपूर्ण बात दो कारकों के दशा के बीच में यदि मारकग्रह की भी दशा आ जाय तो उसमें भी शुभता का फल मिलना जारी रहता है।हालांकि मारक ग्रह होने के कारण वह स्वास्थ्य में किञ्चित गिरावट अवश्य देता है।
🕉🔜12-दशाओं के बाद ग्रहों के गोचर पर भी विचार करना चाहिए क्योकि शनि राहु केतु की राशि से अशुभ स्थानों पर गोचर महादशा के शुभफलों में बाधक बनता है।शनि की साढेसाती स्वयं मे एक मारकदशा के तुल्य है।
          इस प्रकार से विवेचन करके इस निष्कर्ष पर पंहुचा जा सकता है व्यक्ति के जीवन का कौन सा दौर शुभ रहेगा और कौन सा दौर समस्याग्रस्त करने वाला।